आत्मनिर्भरता पर छोटा-सा निबंध हिंदी में – Essay on Self Independent in Hindi
‘स्व’ अर्थात स्वयं या अपने पर अवलंबित होना स्वावलंबन या आत्मनिर्भरता है। आत्मनिर्भरता स्वतंत्रता प्रतीक है। आत्मनिर्भरता के द्वारा व्यक्ति उन्नति के पथ पर उत्तरोत्तर बढ़ता चला जाता है।
आत्मनिर्भर व्यक्त निर्लोभी होता है। वह अपना ही स्वार्थ साधन नहीं करता वरन उसके कर्म सभी के कल्याण के लिए होते है। आत्मनिर्भर व्यक्ति ढृढ़निष्चयी होता है,अतः उसकी गर्जना होती है।
मै राह ढूढूँगा या राह निकालूँगा।
आत्मनिर्भर व्यक्ति की आत्मा पवित्र होती है। आत्मनिर्भर व्यक्ति प्रत्येक स्थिति का सामना बड़ी दृढ़ता के साथ करता है। इसलिए वह महान होता है। ढृढ़निष्चयी व्यक्ति आत्मा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करता।
संसार में ऐसे लोगों का अभाव नहीं जिन्होंने आत्म-स्वतंत्रता को प्रश्रय दिया और महापुरुष कहलाए। आत्मनिर्भरता आत्म मर्यादा और नम्रता से जुड़ा एक विशिष्ट चारित्रिक गुण होता है।
आत्मनिर्भर व्यक्ति चुकि मानसिक रूप से स्वतंत्र होता है, अतः उसमे चित्त की दृढ़ता होती है। वह परमुखापेक्षी या परावलम्बी नहीं होता। आत्मनिर्भरता व्यक्ति के विचारो और निर्णयों में दृढ़ता लाती है।
चित्त की दृढ़ता व्यक्ति को उद्यमशील, उत्साही और परिश्रमी बनाती है। जीवन में सफलता दिलाने में, जीवन को उन्नत बनाने में आत्मनिर्भरता का विशिष्ट स्थान है।
आत्मनिर्भरता से व्यक्ति में संस्कारो का प्रादुर्भाव होता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति चतुर तथा विवेकी होता है ,अतः वह सर ऊँचा करते चलता है।
Final Thoughts –
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