‘संक्षेपण’ का अर्थ है — छोटा करना।
दिए गए संदर्भ के विचारों को बिना बदले उन्हें कम शब्दों में स्पष्ट कर देना ही ‘संक्षेपण’ है।
संक्षेपण करने में कुछ भूल हो जाने की संभावना रहती है, अतः शुद्ध संक्षेपण करने के लिए इसके नियमों को जान लेना आवश्यक है।
संक्षेपण के नियम : –
1 . दिए गए संदर्भ को ध्यान से तीन बार पढ़कर पूर्ण रूप से समझ लेना चाहिए।
2 . दिए गए संदर्भ की मुख्य बातों को रेखांकित कर देना चाहिए ।
3 . अगर दिए गए संदर्भ की शब्द-संख्या ज्ञात न हो, तो गिनकर ज्ञात कर लेना चाहिए। ‘संक्षेपण’ मूल संदर्भ से एक तिहाई होना चाहिए।
4 . ‘संक्षेपण’ करने में अपनी भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
5 . ‘संक्षेपण’ के मूल संदर्भ के सभी विचारों का उल्लेख होना चाहिए।
6 . ‘संक्षेपण’ की भाषा ‘गागर में सागर’ की तरह कसी हुई होनी चाहिए।
7 . उत्तम पुरुष में ‘संक्षेपण’ नहीं लिखना चाहिए।
8 . अलंकार, विशेषण और क्रिया-विशेषण शब्दों का प्रयोग कम-से-कम करना चाहिए।
9 . ‘संक्षेपण’ में मूल संदर्भ की भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
10 . ‘संक्षेपण’ में व्याकरण के सभी नियमों का अक्षरशः पालन किया जाना चाहिए।
11 . उपर्युक्त नियमों का पालन करते हुए पहले ‘संक्षेपण’ का ‘रफ’ में ‘प्रारूप’ तैयार करना चाहिए।
12 . इस ‘प्रारूप’ का एक उपयुक्त ‘शीर्षक’ देना चाहिए। शीर्षक मूल संदर्भ के मूलभाव से संबंधित होना चाहिए।
13. अन्त में ‘रफ’ को ठीक करके, उपयुक्त ‘शीर्षक’ देकर ‘संक्षेपण’ तैयार कर लेना चाहिए।
14 . ‘संक्षेपण’ के नीचे शब्द-संख्या लिख देनी चाहिए।
15 . संक्षिप्तता, पूर्णता, स्पष्टता और भाषा की सरलता ‘संक्षेपण’ के आवश्यक गुण हैं।
उदाहरण 1 .
चरित्र का महत्त्व आज गौण हो गया है। समाज में चरित्रवान की नहीं, धनवान की पूछ है। फलतः भ्रष्टाचार पनप रहा है।
जिस पिता ने घुसखोरी और भ्रष्टाचार से लाखों रुपये पैदा किये हैं, क्या यह आशा की जा सकती है कि उसका पुत्र सात्विक मनोवृति का निकलेगा?
आज की शिक्षा-पद्धति में भी चरित्र निर्माण के लिए कोई स्थान नहीं। सच तो यह है कि आचरण की महत्ता को हम भूल गये हैं। इसका प्रभाव हमारी संतान पर पड़ना स्वाभाविक है।
गाँधीजी इसकी महत्ता समझते थे, अतः वे सदा आत्मा के विकास पर जोर देते थे वे कहते थे— “आत्मिक शिक्षा के लिए आत्मिक व्यायाम चाहिए और यह व्यायाम शिक्षक का आचरण है।
लंका में बैठा सावधान शिक्षक आचरण से शिष्य की आत्मा को हिला सकता है।” कहाँ है ऐसे शिक्षक आज? लंका तो बहुत दूर है, वर्ग में छात्र के पास बैठकर भी उसकी आत्मा को हिलाने वाले आचरणशील शिक्षक शायद ही समूचे भारत में दो-चार हों।
फिर आज के विद्यार्थियों से आरुणि जैसी गुरुभक्ति की आशा करना बेकार है। घड़े में जैसा पानी भरा जाएगा, घड़ा उलटने पर वही तो बाहर आएगा।
प्रमुख बिन्दु :
चरित्र का महत्व गौण — धन की पूछ — भ्र्ष्टाचार का बोलबाला — आधुनिक शिक्षा चरित्र-निर्माण में असमर्थ — आचारवान शिक्षकों का अभाव — चरित्रवान शिक्षकों की कमी — गाँधीजी का आत्मा के विकास पर जोर देना।
1 . | आज | के | समाज | में लोगों के |
2 . | चरित्र | का | अवमूल्यन | हो गया है। |
3 . | धनवानों | की | महत्ता है। | भ्र्ष्टाचार का |
4 . | बोलबाला | है। | भ्र्ष्ट पिता | का पुत्र |
5 . | भी | भ्र्ष्ट | होगा। आज | की शिक्षा-पद्धति |
6 . | में | भी | चरित्र-निर्माण | की बातें |
7 . | नहीं | पाई | जाती हैं। | आचारवान शिक्षक |
8 . | की | कमी | है। इसीलिए | चरित्रवान छात्र |
9 . | भी | नहीं | होते। अतएव | गाँधीजी आत्मिक |
10 . | विकास | पर | बहुत जोर | देते थे। |
(शब्द संख्या 60)
संक्षेपण का अन्तिम रूप :
चरित्र का अवमूल्यन
1 . | आज | समाज | के चरित्र | का अवमूल्यन |
2 . | हो | गया | है। फलतः | भ्र्ष्टाचार का |
3 . | बोलबाला | है। | भ्र्ष्ट | पिता का पुत्र |
4 . | भी | भ्र्ष्ट | ही होगा। | आधुनिक शिक्षा-पद्धति |
5 . | में | भी | चरित्रनिर्माण का | कोई स्थान |
6 . | नहीं | है। | आचरणशील | शिक्षकों का अभाव |
7 . | है। | जिससे | चरित्रवान | शिष्य भी नहीं |
8 . | होते। | इसलिए | गाँधीजी | आत्मा के विकास |
9 . | पर | जोर | देते थे। |
(52 शब्द)
उदाहरण : 2
मनुष्यरूपी तलवार की धार चरित्र है । अगर इस धार में तीक्ष्णता है, तो वह तलवार भले ही लोहे की हो, अपने काम में अधिक कारगर सिद्ध होती है। इसके विपरीत यदि इस तलवार की धार मोटी है, भद्दी है, तो वह तलवार-सोने की ही क्यों न हो — हमारे किसी काम की नहीं हो सकती। इसी प्रकार यदि किसी का चरित्र ही नष्ट हो गया हो, तो वह मनुष्य मुर्दे से भी बदतर है, क्योंकि मुर्दा तो किसी और मनुष्य का बुरा नहीं कर सकता, पर एक चरित्रभ्रष्ट मनुष्य अपने साथ रहने वालों को भी अपने ही रास्ते पर ले जाकर अवनति एवं सत्यानाश के भयावने गढ़े में ढकेल सकता है। (111 शब्द)
संक्षेपण :
चरित्र का महत्त्व
धार-रहित सोने की तलवार भी बेकार होती है। यही हाल मनुष्य के चरित्र का है। असुन्दर, पर चरित्रवान व्यक्ति ठीक है, पर सुन्दर किन्तु चरित्र भ्रष्ट व्यक्ति ठीक नहीं, क्योंकि वह औरों को पतन की ओर ले जाता है। (38 शब्द)
अभ्यास :
1 . निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें :
(क) संक्षेपण किसे कहते है ? स्पष्ट करें।
(ख) संक्षेपण के प्रमुख नियमों का वर्णन करें।
2 . नीचे दिये गये संदर्भों का उपयुक्त शीर्षक देकर संक्षेपण करें :
1 . जिस मनुष्य ने बिना किसी संदेह के स्थिर-निर्णय कर लिया और शहद की मक्खियों की भाँति उसके पीछे पड़ गया, वही अपने ध्येय तक पहुँच सकता है। जिसका चित्त दोलायमान है, जिसके हृदय में संशयरूपी कीड़ा वर्तमान है, जिसे सदा एक ओर का पलड़ा भारी दिखाई पड़ता है, जिसे अपनी बुद्धि पर विश्वास नहीं है, उसकी कोई कद्र नहीं करता, क्योंकि सबको यही आशंका बनी रहती है कि वह किसी क्षण अपना विचार बदल सकता है। मनुष्य की सबसे बड़ी दौलत प्रत्युत्पन्नमतित्व है । (101 शब्द)
2 . वीरों के बनाने के कारखाने नहीं हो सकते। वे तो देवदार के वृक्षों की तरह जीवन के वन में खुद-ब-खुद पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिये, बिना किसी के , हाथ लगाये स्वयं तैयार होते हैं। दुनिया के मैदान में अचानक ही सामने आकर वे खड़े हो जाते हैं। उनका सारा जीवन भीतर-ही-भीतर होता है, बाहर तो रत्नों की खानों की ऊपरी जमीन की तरह कुछ भी दृष्टि में नहीं आता । (60 शब्द)
3 . हमलोग भारत माता की संतान हैं। संतान से पूजा पाने का जितना अधिकार माँ को है उतना ही जन्मभूमि को भी, आज तक जितने वीर, महान्, धीर, धार्मिक पुरुषों ने संसार में जन्म ग्रहण किया है और जो मनुष्य समाज में देवता की दृष्टि से देखे जा चुके हैं, क्या उनमें से एक भी ऐसे व्यक्ति का नाम बतला सकते हो जो मातृभक्त न हो ? तुम पुराणों और इतिहास ग्रन्थों के पन्ने उलटकर देखो — मातृभक्तिहीन या स्वदेश-द्रोही एक व्यक्ति का नाम नहीं पाओगे। जो मातृभक्त नहीं है, जिन्हें जन्मभूमि में अनुराग नहीं है, वे कदापि बड़ाई नहीं पा सकते। वे मान्य-मंडलों में कभी परिगणित नहीं हो सकते। (113 शब्द)
Final Thoughts –
आप यह हिंदी व्याकरण के भागों को भी पढ़े –
- व्याकरण | भाषा | वर्ण | स्वर वर्ण | व्यंजन वर्ण | शब्द | वाक्य | संधि | स्वर संधि | व्यंजन संधि | विसर्ग संधि | लिंग | वचन | कारक
- संज्ञा | सर्वनाम | विशेषण | क्रिया | काल | वाच्य | अव्यय | उपसर्ग | प्रत्यय | समास | विराम चिन्ह | रस-छंद-अलंकार