Paryavaran Pradushan Par Nibandh in Hindi
मनुष्य अपने दैनिक जीवन में जिस सक्रियता का परिचय देता है उसके दो परिणाम होते हैं –
1 . लक्ष्य की उपलब्धि,
2 . गंदगी का परित्याग।
हम चाहे कोई भी काम करें, फसल उगाये, खेले-कूदे या घरेलू कामकाज करें। थोड़ी बहुत ऐसी चीजें छोड़ ही देते हैं जिसे गंदगी कहते हैं। इस गंदगी को साफ कर कुछ पदार्थों को एक जगह रखते जाते हैं। इसे कूड़ा कहते हैं।
हम कभी इन कूड़े को खाद बना देते हैं, तो कभी जला देते हैं, कभी जमीन के नीचे गाड़ देते हैं। यदि ऐसा ना करें तो कूड़ो का अम्बार लग जाता है।
कूड़ा या गंदगी हमेशा हानिकारक होता है। यह हानिकारक कीटाणु पैदा करता है। यह कीटाणु हमें बीमार बनाते हैं। अतः इनकी रोकधाम करना आवश्यक है।
जब से वैज्ञानिक प्रगति के कारण कल-कारखानों में वृद्धि हुई है तबसे कारखानों से निकलने वाला धुआं, उन में प्रयुक्त होने वाले रसायनों तथा सामग्रियों के अवशेष, उसके धूल कण आदि की मात्रा लगातार बढ़ती और जमा होती जा रही है।
यह रसायन, हमारे लिए उपयुक्त कूड़ो की ही भांति हानिकारक है। हम जिस संसार में रह रहे हैं उसमें हमारे जीवन के तीन आधार तत्व है।
Paryavaran Pradushan Par Nibandh in Hindi
पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध हिंदी में – Paryavaran Pradushan Essay in Hindi
प्रथम धरती, जिस पर हम रहते हैं। इसकी मिट्टी में किसी न किसी रूप में हमारा संबंध बना रहता है। द्वितीय हवा, जिसमें हम सांस लेते हैं। यह हमारे जीवन का आधार है।
इसके अभाव में हम जीवन की बात सोच ही नहीं सकते हैं। तीसरा पानी, यह हमारे लिए हवा की भांति ही आवश्यक है। हम सभी लोगों को अगर पानी ना मिले तो प्यासे मर जायें, हवा ना मिले तो दम घुट कर मर जायें।
इस तरह धरती पर हमारा जीवन हवा और पानी पर निर्भर है। विज्ञान के अनुसार हवा में ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड आदि गैसें होती है, तो पानी अक्सीजन और हाइड्रोजन का संयोग है।
इन दोनों में इन गैसों की निश्चित मात्रा रहती है। ऑक्सीजन हम सांस लेते हैं। यह जीवन रक्षक है। सामान्य दशा में हवा और पानी जब संयोजकों की निश्चित मात्रा से युक्त होते हैं तो शुद्ध कहलाते हैं।
लेकिन जब विभिन्न कारणों से इनका अनुपात और असंतुलित हो जाता है तो यह काम के लायक नहीं रह पाते हैं और इसे ही हम प्रदूषण कहते हैं।
ऊपर जो बताया गया है उसके आधार पर प्रदूषण तीन प्रकार के हो जाते हैं –
(1 .) वायु प्रदूषण
(2 .) जल प्रदूषण
(3 .) मिट्टी प्रदूषण
कल-कारखानों से निकलने वाले धुएं, सड़े-गले पदार्थों से निकलने वाली गंध तथा ऐसे ही अन्य गैसीय पदार्थ जब वायु में मिलकर सामान्य अनुपात को खराब कर देती है।
तब हवा सांस लेने योग्य नहीं रह पाती है। हमें ना केवल सांस लेने में असुविधा होती है अपितु हम अनेक प्रकार की बीमारियों के कीटाणुओं को अपनी सांसों की सहायता से भीतर पहुंचा देते हैं।
विज्ञान के कारण जब से पेट्रोल और डीजल से चलने वाली गाड़ियों के अधिकतर उपयोग होने लगा है तब से इन गाड़ियों से निकलने वाले धुएं तथा धूलकण वायु को लगातार प्रदूषित करते जा रहे हैं।
बड़े-बड़े नगरों में कारखानों के धुएं से वातावरण इतना दूषित हो गया है अब राह चलने वाले लोग नाक पर हमेशा मास्क लगाने को विवश हो गए हैं।
बढ़ती हुई आबादी के कारण अधिक मात्रा में मल-मूत्र त्याग, कल-कारखानों के कचरे, विभिन्न रसायनों के अवशेष तथा तैलीय पदार्थ बहकर जब जल में मिल जाते हैं तो जल भी प्रदूषित हो जाता है।
ऐसा जल पीने योग्य नहीं रहता है। विविशता में इसे पी लेने पर मनुष्य, पशु-पक्षी आदि या तो मर जाते हैं या बड़ी संख्या में रोगग्रस्त हो जाते हैं।
दुनिया के वैज्ञानिकों ने विश्व भर में प्राप्त जल स्रोतों का परीक्षण कर किया बताया है कि जल का अधिकांश भाग प्रदूषित हो गया है और जो शुद्ध जल बचा हुआ है, वर्तमान आबादी के लिए पर्याप्त नहीं है।
एक समय था जब मिट्टी लगाने और मिट्टी से जुड़कर रहने से शरीर स्वस्थ और मजबूत होता था। लेकिन रासायनिक कचरे और बढ़ती हुई गंदगी के कारण मिट्टी भी प्रदूषित हो गई है।
खेतों में फसल पढ़ाने या फसल की रक्षा के लिए जो खाद और कीटनाशक प्रयोग किए जा रहे हैं, उनसे भी मिट्टी प्रदूषित हो जा रही है।
अतः हम सभी मनुष्य को पर्यावरण प्रदूषण से होने वाले हानियों को समझकर इसके रोकथाम के लिए कोई अच्छा कदम जरूर उठाना चाहिए।
Final Thoughts –
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