Birsa Munda Par Nibandh in Hindi
व्यक्ति अपने कर्मों के द्वारा ही सम्मानित होता है। अपने सुकर्मों के बल पर वह “भगवान” की तरह ही पूजे भी जाने लगता है। बिरसा मुंडा भी अपने सुकर्मों के द्वारा भगवान की तरह पूजे जाते हैं।
बिरसा मुंडा का जन्म खूंटी के अरकी प्रखंड स्थित उलीहातू मैं 15 नवंबर, 1857 ई. को हुआ था। इनकी माता का नाम कर्मी और पिता का नाम सुगना मुंडा था।
बिरसा मुंडा का जन्म एक अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ था। सलगा स्कूल में इन्होंने अपनी शिक्षा शुरू की। प्राथमिक शिक्षा के बाद अपर प्राइमरी शिक्षा के लिए बुर्जू मिशन स्कूल में अपना दाखिला लिया।
फिर चाईबासा में रहकर उन्होंने उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त की। बिरसा अपनी आजीविका के लिए गौरबेडा के स्वासी परिवार में नौकरी करने लगे।
इसके बाद वे गांव के लोगों की सेवा में लग गए। लोगों को रोग मुक्त करने के लिए पार्थना करते और मंत्र का जाप करते। वे मांस खाना छोड़ दिए।
गोवध को रुकवाया। वे एक विशाल आम वृक्ष के नीचे बैठकर लोगों को दवा देते और उपदेश देते। – सिंगबोंगा (ईश्वर) एक है; भूत प्रेत मत मानो; पूजा में बलि बंद करो; हिंसा मत करो; मांस मछली मत खाओ; शराब मत पियो; सादा रहो; घर घर में तुलसी चौरा की पूजा करो; सफेद ध्वज फहराओ; झूठ मत बोलो; चोरी मत करो; एकता बनाए रखो; हर बृहस्पतिवार को छुट्टी मनाओ; कुसंग से बचो; इत्यादि।
लोग इनके प्रवचन को सुनते और एकसाथ भजन करते। जनता में बिरसा मुंडा शीघ्र अत्यंत लोकप्रिय हो गए और दूर-दूर से लोग इनके दर्शन के लिए आने लगे तथा लोग इन्हें ‘बिरसा भगवान‘ के नाम से पुकारने लगे।
आरम्भ में बिरसा का आंदोलन सुधारवादी था, किंतु बाद में यह अंग्रेजों से स्वतंत्रता की लड़ाई के रूप में परिणित हो गया। बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया।
जेल के बाहर बिरसा के अनुयाई इनके विचारों का प्रसार कर रहे थे। 1807 में यह जेल से रिहा हुए। बिरसा स्वयं शांतिपूर्वक तरीके से क्रांति लाना चाहते थे, किन्तु सिबुआ वुरु की सभा में इनके अनुयायी ने हिंसा तथा बलपूर्वक आंदोलन चलाने की मांग की।
विद्रोह शुरू हुआ और अनेक स्थानों पर हलचल मच गई। पुलिस कर्मचारियों को मारा गया और पुलिस स्टेशन को नुकसान पहुंचाया गया। एटकेडी में बिरसा के प्रमुख शिष्य गया।
मुंडा और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई। अनेक सिपाही मारे गए। गया मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया। बिरसा मुंडा के साथ, मुंडा लोगों ने खूंटी थाने को जला दिया।
और एक सिपाही की हत्या कर दी। बिरसा की गिरफ्तारी के लिए 500 रूपये का इनाम रखा गया। बिरसा सभा करते और लोगों को मांस-मंदिरा से दूर रहने की सलाह देते।
कुछ लोगों ने इनाम की लालच में छल किया और एक रात कुछवारा जंगल में सोते हुए इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में वह सभी को ढाढ़स बंधाते और मनोबल बढ़ाए रखने की सीख़ अपने लोगों को देते रहे।
जेल में हैजा होने से 9 जून, 1901 ई. उनकी मृत्यु हो गई। इनका अंतिम संस्कार हरमू नदी के किनारे हुआ। गया मुंडा और उनके पुत्र को फांसी की सजा मिली।
” बिरसा का आंदोलन भारत के जन-आंदोलनों में आदर के साथ याद किया जाता हैं। “
Final Thoughts –
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