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Anushasan Ke Mahatva Par Nibandh in Hindi
Essay on Discipline in Hindi
‘अनुशासन’ का अर्थ है – शासन में रहना, नियम, कानून कायदे को मानना। यह शासन अपने विवेक का हो या अपनी सरकार अथवा समाज का, इस शासन का नियंत्रण नहीं रहने से स्वतंत्रता, स्वछंदता बन जाती है।
जो व्यक्ति और समाज दोनों को ले रूकती है। पृथ्वी, सूर्य, चंद्र आदि प्रकृति के सारे उपादान अनुशासन-बद्ध है। संपूर्ण सृष्टि अनुशासन से संचालित है।
अतः जीवन में अनुशासन का अत्यधिक महत्व है। अनुशासन ही सेना की शक्ति है। एक सेना-नायक के नियंत्रण में अनुशासनबद्ध होकर ही हुए एक सशक्त सेना का निर्माण करते हैं।
इसीलिए सेना की शक्ति उसकी संख्या नहीं होती है अपितु उसका अनुशासन होती है। जिस परिवार में अनुशासन की कड़ी जितनी ही मजबूत होती है, वह परिवार उतना ही सशक्त सुखी एवं संपन्न होता है।
शासन ही किसी कार्यालय की श्रेष्ठा का आधार है। यदि कर्मचारी कार्यालय के नियमों का अनुसरण ना करें, वे अपने अधिकारों के आदर्शों का पालन ना करें तो वहां कोई काम सुचारू रूप से संपादित न हो सकेगा।
अनुशासन ही जीवन की गति है। यह निर्विवाद सच है कि सुखी सामाजिक जीवन अनुशासनबद्धता पर ही निर्भर है। इस अनुशासनबद्धता की शिक्षा मिलती है अपने बड़े-बूढ़ों के आचरण से।
अतः यदि हम चाहते हैं कि बच्चे अनुशासित होकर प्रतिष्ठित नागरिक बने, तो हमें अपने आप को अनुशासित बनाना होगा।
उनके सामने कोई ऐसी बात कोई ऐसा काम ना करना होगा जिससे उनमें उच्छखलता का भाव आए।
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्व –
अनुशासन की आवश्यकता छात्र जीवन के लिए सबसे अधिक है। वह विवेक संगत श्रृंखला में बने रहने की आदत डालें। उनकी सामर्थ्य बिखर कर बर्बाद ना होने पाए।
उनकी साधना के बादल चट्टान और बंजर पर न बरसे। उनकी लालसा कलंक से काले पड़े भौरे की लालसा मात्र न बन जाए।
इसके लिए छात्रों को व्यवहारिक जीवन में अनुशासन के नियमों का पालन करना परम आवश्यक है।
जीवन के हर क्षेत्र में अनुशासन की आवश्यकता पड़ती है। केवल विद्यालय ही नहीं वरन परिवार एवं समाज में भी अनुशासन के नियमों का पालन करना चाहिए।
अनुशासन की पहली सीढ़ी है नम्रतापूर्वक व्यवहार करना, बोलने-चालने, उठने-बैठने, खाने-पीने आदि में अनुशासित व्यवहार छात्रों में उच्च गुणों का समावेश करते हैं।
छात्रों को समझना चाहिए कि अनुशासन में बंधा हुआ जीवन, पिंजरे में कैद किसी पक्षी का रुद्ध-क्षुब्ध जीवन नहीं होता है वरण अनुशासन तो सदभावो का प्रेरक, विनय और शील का सृस्टा, साधना का शाखा और निरंकुश स्वेच्छाचार का दुश्मन होता है।
अतः छात्र जीवन में इसका अत्यंत महत्व है क्योंकि “अनुशासन ही सफलता का मूल मंत्र होता है।”
Final Thoughts –
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